आप हैं महव-हुस्न-ओ-रानाई
हम को अपना किया है सौदाई
देख राज़-ओ-नियाज़ को साक़ी
ख़ुद-तमाशा ओ ख़ुद-तमाशाई
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इस शोख़-ए-रम-शिआ'र से कहता सलाम-ए-शौक़
ये ज़मज़मा तुयूर-ए-ख़ुश-आहंग का नहीं
अपनी सूरत न जब नज़र आई
जज़्बे में सुलूक और नफ़ी में है जो इसबात
सिक्का अपना नहीं जमता है तुम्हारे दिल पर
वो रम-शिआ'र मिरा शोख़-दीदा आया था
हस्ती-ए-नीस्त-नुमा दीदा-ए-हैराँ समझा
छू ले सबा जो आ के मिरे गुल-बदन के पाँव
निगह-ए-नाज़ से इस चुस्त क़बा ने देखा
हम को भरम ने बहर-ए-तवहहुम बना दिया
कहाँ है वो गुल-ए-ख़ंदाँ हमें नहीं मालूम
तू ने सूरत जो अपनी दिखलाई