हम को भरम ने बहर-ए-तवहहुम बना दिया
दरिया समझ के कूद पड़े हम सराब में
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दिल-ए-शहीद हुआ है शहीद-ए-हुस्न-ए-सिफ़ात
मुझ से कहते हो क्या कहेंगे आप
नफ़्स-ए-मतलब ही मिरा फ़ौत हुआ जाता है
अपने जुनूँ-कदे से निकलता ही अब नहीं
किस रंग में बयान करें माजरा-ए-क़ल्ब
अगर इतना न तू अय्यार होता
इश्क़ माशूक़ का है पैदाई
नैरंग-ए-इश्क़ आज तो हो जाए कुछ मदद
हुआ न क़ुर्ब-ए-तअ'ल्लुक़ का इख़तिसास यहाँ
देख कर तेरी आलम-आराई
दिल भी अब पहलू-तही करने लगा
निगह-ए-नाज़ से इस चुस्त क़बा ने देखा