नैरंग-ए-इश्क़ आज तो हो जाए कुछ मदद
पुर-फ़न को हम करें मुतहय्यर किसी तरह
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नफ़्स-ए-मतलब ही मिरा फ़ौत हुआ जाता है
इस शोख़-ए-रम-शिआ'र से कहता सलाम-ए-शौक़
जज़्बा-ए-इश्क़ चाहिए सूफ़ी
तू ही अनीस-ए-ग़म रहा नाला-ए-ग़म-गुसार-ए-शब
सिक्का अपना नहीं जमता है तुम्हारे दिल पर
दिल-ए-ज़िंदा ख़ुद रहनुमा हो गया
दिल-ए-शहीद हुआ है शहीद-ए-हुस्न-ए-सिफ़ात
हुए बे-ख़ुद तो बे-ख़ुदी आई
जान-ओ-दिल था नज़्र तेरी कर चुका
दिल-सोख़्ता को अपने जलाया ग़ज़ब किया
जज़्बे में सुलूक और नफ़ी में है जो इसबात
तुम ने देखा ही नहीं है वो निज़ाम-ए-मख़्सूस