हुए बे-ख़ुद तो बे-ख़ुदी आई
ख़ुद-शनासी हुई ख़ुद-आराई
ख़ुद-नुमाई नहीं ख़ुदाई है
ख़ुद-तमाशा ओ ख़ुद-तमाशाई
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Habib Jalib
Javed Akhtar
Gulzar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(600) Peoples Rate This
अदू-ए-ख़ीरा-सराब हो गया बड़ा ख़ुर्रांट
तू ही अनीस-ए-ग़म रहा नाला-ए-ग़म-गुसार-ए-शब
जज़्बे में सुलूक और नफ़ी में है जो इसबात
नफ़्स-ए-मतलब ही मिरा फ़ौत हुआ जाता है
तू ने सूरत जो अपनी दिखलाई
हुआ न क़ुर्ब-ए-तअ'ल्लुक़ का इख़तिसास यहाँ
तुझे ख़ल्क़ कहती है ख़ुद-नुमा तुझे हम से क्यूँ ये हिजाब है
इस शोख़-ए-रम-शिआ'र से कहता सलाम-ए-शौक़
ये ज़मज़मा तुयूर-ए-ख़ुश-आहंग का नहीं
क़ालिब को अपने छोड़ के मक़लूब हो गए
हरीस हो न जहाँ में न अपना जी भटका
वो रम-शिआ'र मिरा शोख़-दीदा आया था