हुआ न क़ुर्ब-ए-तअ'ल्लुक़ का इख़तिसास यहाँ
ये रू-शनास ज़ि-राह-ए-बईदा आया था
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हसरत-ओ-उम्मीद का मातम रहा
तुझे ख़ल्क़ कहती है ख़ुद-नुमा तुझे हम से क्यूँ ये हिजाब है
सालिक है गरचे सैर-ए-मक़ामात-ए-दिल-फ़रेब
हम से जो अहद था वो अहद-शिकन भूल गया
मिलते नहीं हो हम से ये क्या हुआ वतीरा
क़ालिब को अपने छोड़ के मक़लूब हो गए
तलाश जिस नूर की है तुझ को छुपा है तेरे बदन के अंदर
हरीस हो न जहाँ में न अपना जी भटका
इश्क़ माशूक़ का है पैदाई
जज़्बे में सुलूक और नफ़ी में है जो इसबात
हमारा हुस्न-ए-तअल्लुक़ वफ़ा बने न बने
जल्वा-ए-दीदार तो इक बात है