जान-ओ-दिल था नज़्र तेरी कर चुका
तेरे आशिक़ की यही औक़ात है
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जज़्बा-ए-इश्क़ चाहिए सूफ़ी
कर सैर अपने दिल की है नूर का तमाशा
तू ही अनीस-ए-ग़म रहा नाला-ए-ग़म-गुसार-ए-शब
वो आए निगार मैं न मानूँ
उश्शाक़ जो तसव्वुर-ए-बर्ज़ख़ के हो गए
दिल-ए-शहीद हुआ है शहीद-ए-हुस्न-ए-सिफ़ात
क्यूँ आ गए हैं बज़्म-ए-ज़ुहूर-ओ-नुमूद में
जल्वा-ए-दीदार तो इक बात है
छू ले सबा जो आ के मिरे गुल-बदन के पाँव
हरीस हो न जहाँ में न अपना जी भटका
वो माह जल्वा दिखा कर हमें हुआ रू-पोश
बुराई भलाई की सूरत हुई