बुराई भलाई की सूरत हुई
मोहब्बत में सब कुछ रवा हो गया
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हुए बे-ख़ुद तो बे-ख़ुदी आई
जज़्बे में सुलूक और नफ़ी में है जो इसबात
वो आए निगार मैं न मानूँ
वुसअ'त-ए-मशरब-ए-रिंदाँ का नहीं है महरम
दिल-ए-शहीद हुआ है शहीद-ए-हुस्न-ए-सिफ़ात
ये ज़मज़मा तुयूर-ए-ख़ुश-आहंग का नहीं
जज़्बा-ए-इश्क़ चाहिए सूफ़ी
महव-ए-लिक़ा जो हैं मलकूती-ख़िसाल हैं
ये रिसाला इश्क़ का है अदक़ तिरे ग़ौर करने का है सबक़
दिल-सोख़्ता को अपने जलाया ग़ज़ब किया
दाग़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ मिटाया न जाएगा
तअय्युन तसलसुल है नक़्श-ए-बदन का