महव-ए-लिक़ा जो हैं मलकूती-ख़िसाल हैं
बेदार हो के भी नज़र आते हैं ख़्वाब में
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Wasi Shah
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(366) Peoples Rate This
वही ज़िद उन को है वही है हट
हरीस हो न जहाँ में न अपना जी भटका
वो रम-शिआ'र मिरा शोख़-दीदा आया था
अश्क आ आ के मिरी आँखों में थम जाते हैं
हम को भरम ने बहर-ए-तवहहुम बना दिया
सालिक है गरचे सैर-ए-मक़ामात-ए-दिल-फ़रेब
वुसअ'त-ए-मशरब-ए-रिंदाँ का नहीं है महरम
तू ने सूरत जो अपनी दिखलाई
क्यूँ आ गए हैं बज़्म-ए-ज़ुहूर-ओ-नुमूद में
जज़्बे में सुलूक और नफ़ी में है जो इसबात
इस शोख़-ए-रम-शिआ'र से कहता सलाम-ए-शौक़
दाग़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ मिटाया न जाएगा