मेरी क़िस्मत की कजी का अक्स है
ये जो बरहम गेसू-ए-पुर-ख़म रहा
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दिल-ए-ज़िंदा ख़ुद रहनुमा हो गया
जान-ओ-दिल था नज़्र तेरी कर चुका
वाह क्या हम को बनाया और बना कर रह गए
नैरंग-ए-इश्क़ आज तो हो जाए कुछ मदद
जो बशर हर वक़्त महव-ए-ज़ात है
अदू-ए-ख़ीरा-सराब हो गया बड़ा ख़ुर्रांट
हमारा हुस्न-ए-तअल्लुक़ वफ़ा बने न बने
हस्ती-ए-नीस्त-नुमा दीदा-ए-हैराँ समझा
जम गए राह में हम नक़्श-ए-क़दम की सूरत
तलाश जिस नूर की है तुझ को छुपा है तेरे बदन के अंदर
जल्वा-ए-दीदार तो इक बात है
हुए बे-ख़ुद तो बे-ख़ुदी आई