किया है चश्म-ए-मुरव्वत ने आज माइल-ए-मेहर
मैं उन की बज़्म से कल आबदीदा आया था
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वो पास है तेरे दूर नहीं तू वासिल है महजूर नहीं
हसरत-ओ-उम्मीद का मातम रहा
जल्वा-ए-दीदार तो इक बात है
दिल-ए-शहीद हुआ है शहीद-ए-हुस्न-ए-सिफ़ात
दिल-ए-ज़िंदा ख़ुद रहनुमा हो गया
ये रिसाला इश्क़ का है अदक़ तिरे ग़ौर करने का है सबक़
शहीद-ए-अरमाँ पड़े हैं बिस्मिल खड़ा वो तलवार का धनी है
निगह-ए-नाज़ से इस चुस्त क़बा ने देखा
दिल-सोख़्ता को अपने जलाया ग़ज़ब किया
जम गए राह में हम नक़्श-ए-क़दम की सूरत
अश्क आ आ के मिरी आँखों में थम जाते हैं
वो रम-शिआ'र मिरा शोख़-दीदा आया था