नहीं खुलता सबब तबस्सुम का
आज क्या कोई बोसा देंगे आप
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इस शोख़-ए-रम-शिआ'र से कहता सलाम-ए-शौक़
ग़ज़ब के तैश में वो शोख़-दीदा आया था
हस्ती-ए-नीस्त-नुमा दीदा-ए-हैराँ समझा
तलाश जिस नूर की है तुझ को छुपा है तेरे बदन के अंदर
सालिक है गरचे सैर-ए-मक़ामात-ए-दिल-फ़रेब
मिलते नहीं हो हम से ये क्या हुआ वतीरा
जज़्बे में सुलूक और नफ़ी में है जो इसबात
तू ही अनीस-ए-ग़म रहा नाला-ए-ग़म-गुसार-ए-शब
आप हैं महव-ए-हुस्न-ओ-रानाई
शहीद-ए-अरमाँ पड़े हैं बिस्मिल खड़ा वो तलवार का धनी है
वाह क्या हम को बनाया और बना कर रह गए
किस रंग में बयान करें माजरा-ए-क़ल्ब