अपनी सूरत न जब नज़र आई
शक्ल आवारगों ने दिखलाई
उस से निकले तो ये तमाशा है
ख़ुद-तमाशा ओ ख़ुद-तमाशाई
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दिल-सोख़्ता को अपने जलाया ग़ज़ब किया
गया सब रंज-ओ-ग़म कुंज-ए-क़फ़स का
हसरत-ओ-उम्मीद का मातम रहा
हुए बे-ख़ुद तो बे-ख़ुदी आई
अदू-ए-ख़ीरा-सराब हो गया बड़ा ख़ुर्रांट
ये ज़मज़मा तुयूर-ए-ख़ुश-आहंग का नहीं
दिल भी अब पहलू-तही करने लगा
फ़लक पे चाँद सितारे निकलने हैं हर शब
हम को भरम ने बहर-ए-तवहहुम बना दिया
इस शोख़-ए-रम-शिआ'र से कहता सलाम-ए-शौक़
महव-ए-लिक़ा जो हैं मलकूती-ख़िसाल हैं
ये रूपोशी नहीं है सूरत-ए-मर्दुम-शनासी है