मौक़ा-ए-यास कभी तेरी नज़र ने न दिया
शर्त जीने की लगा दी मुझे मरने न दिया
मैं ने देखा है तिरे हुस्न-ए-ख़ुद-आगाह का रोब
अजनबी नज़रों को चेहरे पे बिखरने न दिया
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सहराओं की बात ज़ारों में कही
मिरी ज़िंदगी की ज़ीनत हुई आफ़त-ओ-बला से
शिकायत कर रहे हैं सज्दा-हा-ए-राएगाँ मुझ से
बहरा गोया
सय्यारों में साहिल है वो अज़्मत तुझ को
दिल ही की तरह मुँह भी है काला देखो
मस्ती में नज़र चमक रही है साक़ी
याद हैं आप के तोड़े हुए पैमाँ हम को
ऐ बे-दिलो हरीफ़-ए-शब-ए-तार क्यूँ हुए
गुज़रा है कौन फूल खिलाता ख़िराम से
अभी से सुब्ह-ए-गुलशन रक़्स-फ़रमा है निगाहों में