शहर तलब करे अगर तुम से इलाज-ए-तीरगी
साहिब-ए-इख़्तियार हो आग लगा दिया करो
Anwar Masood
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अब हर्फ़-ए-तमन्ना को समाअत न मिलेगी
नज़र में नित-नई हैरानियाँ लिए फिरिए
उस की ख़्वाहिश है कि अब लोग न रोएँ न हँसें
ज़ख़्म दबे तो फिर नया तीर चला दिया करो
ज़िंदगी ने झेले हैं सब अज़ाब दुनिया के
दिल अगर कुछ माँग लेने की इजाज़त माँगता
आवाज़ में आवाज़ मिलाते ही रहे हम
इक सज़ा और असीरों को सुना दी जाए
एक से सिलसिले हैं सब हिज्र की रुत बता गई
ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ
मैं कब से अपनी तलाश में हूँ मिला नहीं हूँ
अदाकारी में भी सौ कर्ब के पहलू निकल आए