दर-ए-इम्कान की दस्तक मुझे भेजी गई है
मेरी क़िस्मत में तो मौजूद की दौलत नहीं है
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वादी-ए-ग़म में तेरे साथ साथ भटक रहा हूँ मैं
ज़िंदगी अपना फ़ैसला ख़ुद लिखेगी
मैं नज़्म लिखता हूँ!
बा-समर होने की उम्मीद पे बैठा हूँ मैं
मयस्सर आज सरोकार से ज़ियादा है
ख़ुद अपना बोझ उठाओ यहाँ से कूच करो
किसी तरतीब में रक्खी न बिखरने दी है
चेहरे की गर्द
कुछ और भी ज़ियादा सँवर के दिखाऊँगा
ये झाँक लेती है अंदर से आरज़ू-ख़ाना
एक कत्बे की तलाश में