ये झाँक लेती है अंदर से आरज़ू-ख़ाना
हवा का क़द मिरी दीवार से ज़ियादा है
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ख़्वाब-कदों से वापसी
बूढ़ा वक़्त हमारा इस्तिक़बाल करता है
एक कत्बे की तलाश में
ज़िंदगी अपना फ़ैसला ख़ुद लिखेगी
दर-ए-इम्कान की दस्तक मुझे भेजी गई है
बा-समर होने की उम्मीद पे बैठा हूँ मैं
चेहरे की गर्द
ख़ुद अपना बोझ उठाओ यहाँ से कूच करो
मैं मुतमइन न था किरदार से कहानी में
मैं कब से बे-ख़ाल-ओ-ख़त पड़ा हूँ
क्या हो सके हिसाब कि जब आगही कहे