अभी तो बात करो हम से दोस्तों की तरह
फिर इख़्तिलाफ़ के पहलू निकालते रहना
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साँवली
हम को तो इंतिज़ार-ए-सहर भी क़ुबूल है
तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं
ये घर मिरा गुलशन है गुलशन का ख़ुदा-हाफ़िज़
रास्ते याद नहीं राह-नुमा याद नहीं
यूँ तसल्ली दे रहे हैं हम दिल-ए-बीमार को
ब-पास-ए-दिल जिसे अपने लबों से भी छुपाया था
कौन इस देस में देगा हमें इंसाफ़ की भीक
इतने ऊँचे मर्तबे तक तुझ को पहुँचाएगा कौन
तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते
ज़ीस्त की गर्मी-ए-बेदार भी लाया सूरज
दीवारें