ब-पास-ए-दिल जिसे अपने लबों से भी छुपाया था
मिरा वो राज़ तेरे हिज्र ने पहुँचा दिया सब तक
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हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएँगे
साँवली
वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे
सिसकियाँ लेती हुई ग़मगीं हवाओ चुप रहो
यूँ बरसती हैं तसव्वुर में पुरानी यादें
मेहरबाँ हम पे जो तक़दीर हमारी होगी
अब जिस के जी में आए वही पाए रौशनी
जब भी आता है मिरा नाम तिरे नाम के साथ
यारो ये दौर ज़ोफ़-ए-बसारत का दौर है
एहतिराम-ए-लब-ओ-रुख़्सार तक आ पहुँचे हैं
फ़राज़-ए-बे-ख़ुदी से तेरा तिश्ना-लब नहीं उतरा
ज़िंदगी या तवाइफ़