अच्छा यक़ीं नहीं है तो कश्ती डुबा के देख
इक तू ही नाख़ुदा नहीं ज़ालिम ख़ुदा भी है
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लम्हों की परस्तार
अब जिस के जी में आए वही पाए रौशनी
रक़्स करने का मिला हुक्म जो दरियाओं में
आप-बीती
हालात से ख़ौफ़ खा रहा हूँ
वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे
ज़िंदगी मैं भी चलूँगा तिरे पीछे पीछे
उम्र पोशी
राब्ता लाख सही क़ाफ़िला-सालार के साथ
दिल जलता है शाम सवेरे
पर्बत पर्बत घूम चुका हूँ सहरा सहरा छान रहा हूँ
मंज़र समेट लाए हैं जो तेरे गाँव के