अहबाब को दे रहा हूँ धोका
चेहरे पे ख़ुशी सजा रहा हूँ
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तर्क-ए-वफ़ा के ब'अद ये उस की अदा 'क़तील'
ये मो'जिज़ा भी मोहब्बत कभी दिखाए मुझे
अच्छा यक़ीं नहीं है तो कश्ती डुबा के देख
अंदेशा-ए-अर्बाब-हरम साथ रहेगा
आज की बातें कल के सपने
विसाल की सरहदों तक आ कर जमाल तेरा पलट गया है
आओ कोई तफ़रीह का सामान किया जाए
उफ़ुक़ के उस पार ज़िंदगी के उदास लम्हे गुज़ार आऊँ
थी हम-आग़ोशी मगर कुछ भी मुझे हासिल न था
आबाद उसी ने दिल की वादी की है
साया-ए-ज़ुल्फ़ सियह-फ़ाम कहाँ तक पहुँचे
शायद मिरे बदन की रुस्वाई चाहता है