अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मिरी तन्हाई की
Habib Jalib
Gulzar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(355) Peoples Rate This
हालात की उजड़ी महफ़िल में अब कोई सुलगता साज़ नहीं
दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं
दाद-ए-सफ़र मिली है किसे राह-ए-शौक़ में
लहू में डूबा हुआ मिला है वफ़ा का हर इक उसूल तुझ को
सुर्ख़ आहन पर टपकती बूँद है अब हर ख़ुशी
वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे
कोई मक़ाम-ए-सुकूँ रास्ते में आया नहीं
चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानगी अपनी
दिल को ग़म-ए-हयात गवारा है इन दिनों
आज की बातें कल के सपने
प्यार दुलार के साए साए चला करो
रहेगा साथ तिरा प्यार ज़िंदगी बन कर