तर्क-ए-वफ़ा के ब'अद ये उस की अदा 'क़तील'
मुझ को सताए कोई तो उस को बुरा लगे
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दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था
हर तरफ़ सतवत-ए-अर्ज़ंग दिखाई देगी
फूल पे धूल बबूल पे शबनम देखने वाले देखता जा
मैं जब 'क़तील' अपना सब कुछ लुटा चुका हूँ
खुला है झूट का बाज़ार आओ सच बोलें
अहबाब को दे रहा हूँ धोका
थी हम-आग़ोशी मगर कुछ भी मुझे हासिल न था
लेता था जवानी में कभी जिस की पनाह
क्या जाने किस अदा से लिया तू ने मेरा नाम
जीत ले जाए कोई मुझ को नसीबों वाला
'क़तील' अब दिल की धड़कन बन गई है चाप क़दमों की
रास्ते याद नहीं राह-नुमा याद नहीं