सूख गई जब आँखों में प्यार की नीली झील 'क़तील'
तेरे दर्द का ज़र्द समुंदर काहे शोर मचाएगा
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सत्तरहवाँ सिंगार
मिल कर जुदा हुए तो न सोया करेंगे हम
यूँ बरसती हैं तसव्वुर में पुरानी यादें
ये मो'जिज़ा भी मोहब्बत कभी दिखाए मुझे
सितम के बा'द करम की अदा भी ख़ूब रही
वो शख़्स कि मैं जिस से मोहब्बत नहीं करता
मुतमइन कोई नहीं है उस से
ज़िंदगी मैं भी चलूँगा तिरे पीछे पीछे
अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
लम्हों का निशाना कभी होता ही नहीं
वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे
माना जीवन में औरत इक बार मोहब्बत करती है