'क़तील' अब दिल की धड़कन बन गई है चाप क़दमों की
कोई मेरी तरफ़ आता हुआ महसूस होता है
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मेरे ब'अद वफ़ा का धोका और किसी से मत करना
दिल को ग़म-ए-हयात गवारा है इन दिनों
रहगुज़र
रहेगा साथ तिरा प्यार ज़िंदगी बन कर
लेता था जवानी में कभी जिस की पनाह
गाते हुए पेड़ों की ख़ुनुक छाँव से आगे निकल आए
न कोई ख़्वाब हमारे हैं न ताबीरें हैं
उफ़ वो मरमर से तराशा हुआ शफ़्फ़ाफ़ बदन
जो भी आता है बताता है नया कोई इलाज
राब्ता लाख सही क़ाफ़िला-सालार के साथ
वही गेसुओं की उड़ान है वही आरिज़ों का निखार है
दिल जलता है शाम सवेरे