निकल कर दैर-ओ-काबा से अगर मिलता न मय-ख़ाना
तो ठुकराए हुए इंसाँ ख़ुदा जाने कहाँ जाते
Jaun Eliya
Gulzar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(451) Peoples Rate This
वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे
फ़राज़-ए-बे-ख़ुदी से तेरा तिश्ना-लब नहीं उतरा
किया है प्यार जिसे हम ने ज़िंदगी की तरह
मेरी तरह
परेशाँ रात सारी है सितारो तुम तो सो जाओ
तर्क-ए-वफ़ा के ब'अद ये उस की अदा 'क़तील'
कैसे कैसे भेद छुपे हैं प्यार भरे इक़रार के पीछे
क्या ख़बर कब नींद आए दीदा-ए-बे-ख़्वाब में
सोच को जुरअत-ए-पर्वाज़ तो मिल लेने दो
जाँच-परख कर देख चुकी तू हर मुँह-बोले भाई को
रक़्स करने का मिला हुक्म जो दरियाओं में
राब्ता लाख सही क़ाफ़िला-सालार के साथ