लेता था जवानी में कभी जिस की पनाह
वो प्यार नज़र आता है अब उस को गुनाह
क्या हो गया इस उम्र में जाने उस को
या-रब मिरे दिलबर को दिखा सीधी राह
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Rahat Indori
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Wasi Shah
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(965) Peoples Rate This
ये मो'जिज़ा भी मोहब्बत कभी दिखाए मुझे
हालात के क़दमों पे क़लंदर नहीं गिरता
मैं ने पूछा पहला पत्थर मुझ पर कौन उठाएगा
न कोई ख़्वाब हमारे हैं न ताबीरें हैं
हर बे-ज़बाँ को शोला-नवा कह लिया करो
चकले
गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
ये मिरा बुझता सुलगता सिन ये मेरे रात-दिन
फूल पे धूल बबूल पे शबनम देखने वाले देखता जा
जीत ले जाए कोई मुझ को नसीबों वाला
अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
दाद-ए-सफ़र मिली है किसे राह-ए-शौक़ में