गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं
हम चराग़ों की तरह शाम से जल जाते हैं
Gulzar
Parveen Shakir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Wasi Shah
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Anwar Masood
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जो भी ग़ुंचा तिरे होंटों पे खिला करता है
आया ही था अभी मिरे लब पे वफ़ा का नाम
आबाद उसी ने दिल की वादी की है
तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते
ज़िंदगी मैं भी चलूँगा तिरे पीछे पीछे
ब-पास-ए-दिल जिसे अपने लबों से भी छुपाया था
यारो कहाँ तक और मोहब्बत निभाऊँ मैं
अंदेशा
वो शख़्स कि मैं जिस से मोहब्बत नहीं करता
उम्र पोशी
अहबाब को दे रहा हूँ धोका
आज की बातें कल के सपने