दुश्मनी मुझ से किए जा मगर अपना बन कर
जान ले ले मिरी सय्याद मगर प्यार के साथ
Rahat Indori
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Gulzar
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
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ख़याल-ए-जुब्बा-ओ-दस्तार भी नहीं बाक़ी
मुतमइन कोई नहीं है उस से
मुझ से तू पूछने आया है वफ़ा के मअ'नी
दिल को ग़म-ए-हयात गवारा है इन दिनों
अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
हाथ दिया इस ने मिरे हाथ में
क्या जाने किस ख़ुमार में किस जोश में गिरा
दीवारें
निगाहों में चमक दिल में ख़ुशी महसूस करता हूँ
रास्ते याद नहीं राह-नुमा याद नहीं
जब से असीर-ए-ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर हो गया
तड़पती हैं तमन्नाएँ किसी आराम से पहले