दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था
इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था
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गुनगुनाती हुई आती हैं फ़लक से बूँदें
जीत ले जाए कोई मुझ को नसीबों वाला
पर्बत पर्बत घूम चुका हूँ सहरा सहरा छान रहा हूँ
मैं अपने दिल से निकालूँ ख़याल किस किस का
रहगुज़र
क्या जाने किस ख़ुमार में किस जोश में गिरा
बड़ा मुंसिफ़ है अमरीका उसे अल्लाह ख़ुश रक्खे
अंदेशा-ए-अर्बाब-हरम साथ रहेगा
मैं घर से तेरी तमन्ना पहन के जब निकलूँ
हर तरफ़ सतवत-ए-अर्ज़ंग दिखाई देगी
मंज़िल जो मैं ने पाई तो शश्दर भी मैं ही था
शायद मिरे बदन की रुस्वाई चाहता है