बड़ा मुंसिफ़ है अमरीका उसे अल्लाह ख़ुश रक्खे
ब-ज़ोम-ए-ख़्वेश वो सब को बराबर प्यार देता है
किसी को हमला करने के लिए देता है मीज़ाइल
किसी को इन से बचने के लिए राडार देता है
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सुर्ख़ आहन पर टपकती बूँद है अब हर ख़ुशी
उसे मना कर ग़ुरूर उस का बढ़ा न देना
न छाँव करने को है वो आँचल न चैन लेने को हैं वो बाँहें
हिकायात-ए-लब-ओ-रुख़्सार से आगे नहीं जाते
हम को आपस में मोहब्बत नहीं करने देते
तितलियों का रंग हो या झूमते बादल का रंग
अब जिस के जी में आए वही पाए रौशनी
अपनी ज़बाँ तो बंद है तुम ख़ुद ही सोच लो
क्या ख़बर कब नींद आए दीदा-ए-बे-ख़्वाब में
कुछ ग़ुंचा-लबों की याद आई कुछ गुल-बदनों की याद आई
निकल कर दैर-ओ-काबा से अगर मिलता न बुत-ख़ाना
बना हूँ मैं आज तेरा मेहमाँ कोई अदू को ख़बर न कर दे