न छाँव करने को है वो आँचल न चैन लेने को हैं वो बाँहें
मुसाफ़िरों के क़रीब आ कर हर इक बसेरा पलट गया है
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
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Javed Akhtar
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Gulzar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
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सितम तो ये है कि वो भी न बन सका अपना
ज़िंदगी या तवाइफ़
रक़्स करने का मिला हुक्म जो दरियाओं में
दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं
सदमा तो है मुझे भी कि तुझ से जुदा हूँ मैं
दिल जलता है शाम सवेरे
क्या इश्क़ था जो बाइस-ए-रुस्वाई बन गया
ये मो'जिज़ा भी मोहब्बत कभी दिखाए मुझे
आख़री हिचकी तिरे ज़ानूँ पे आए
बड़ा मुंसिफ़ है अमरीका उसे अल्लाह ख़ुश रक्खे
रंग जुदा आहंग जुदा महकार जुदा