न जाने कौन सी मंज़िल पे आ पहुँचा है प्यार अपना
न हम को ए'तिबार अपना न उन को ए'तिबार अपना
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ऐ दोस्त! तिरी आँख जो नम है तो मुझे क्या
राब्ता लाख सही क़ाफ़िला-सालार के साथ
जाँच-परख कर देख चुकी तू हर मुँह-बोले भाई को
अच्छा यक़ीं नहीं है तो कश्ती डुबा के देख
अब जिस के जी में आए वही पाए रौशनी
अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
वो मेरा दोस्त है सारे जहाँ को है मालूम
गुनगुनाती हुई आती हैं फ़लक से बूँदें
उकताहट
जब भी आता है मिरा नाम तिरे नाम के साथ
मैं ने पूछा पहला पत्थर मुझ पर कौन उठाएगा
आज की बातें कल के सपने