सितम तो ये है कि वो भी न बन सका अपना
क़ुबूल हम ने किए जिस के ग़म ख़ुशी की तरह
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तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं
अगरचे मुझ को जुदाई तिरी गवारा नहीं
ये बात फिर मुझे सूरज बताने आया है
कोई मक़ाम-ए-सुकूँ रास्ते में आया नहीं
मैं जब 'क़तील' अपना सब कुछ लुटा चुका हूँ
उसे मना कर ग़ुरूर उस का बढ़ा न देना
तुम आ सको तो शब को बढ़ा दो कुछ और भी
दीवाली
रक़्स करने का मिला हुक्म जो दरियाओं में
उफ़ वो मरमर से तराशा हुआ शफ़्फ़ाफ़ बदन
अंदेशा-ए-अर्बाब-हरम साथ रहेगा
आती है तो खिलती है गुलाबों की तरह