मैं ने पूछा
मुन्ने! तुम क्यूँ अपनी अम्मी जान को बाजी कहते हो
मुन्ना बोला
बाजी भी तो नानी-जी को आपा आपा कहती हैं
इस बाज़ार का जो कोठा है उस की रीत निराली है
यहाँ तो माँ को माँ कह देना सब से गंदी गाली है
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सितम तो ये है कि वो भी न बन सका अपना
ये मो'जिज़ा भी मोहब्बत कभी दिखाए मुझे
गुनगुनाती हुई आती हैं फ़लक से बूँदें
निकल कर दैर-ओ-काबा से अगर मिलता न मय-ख़ाना
थी हम-आग़ोशी मगर कुछ भी मुझे हासिल न था
यूँ लगे दोस्त तिरा मुझ से ख़फ़ा हो जाना
अच्छा यक़ीं नहीं है तो कश्ती डुबा के देख
अब तो बे-दाद पे बे-दाद करेगी दुनिया
इस दौर में तौफ़ीक़-ए-अना दी गई मुझ को
घनघोर घटा के आँचल को जब काली रात निचोड़ गई
मेहरबाँ हम पे जो तक़दीर हमारी होगी
दिल जलता है शाम सवेरे