क्या जाने किस अदा से लिया तू ने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है कि सच-मुच तिरा हूँ मैं
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इक जाम खनकता जाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है
तमाम-तर उसी ख़ाना-ख़राब जैसा है
वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे
लम्हों की परस्तार
अंदेशा-ए-अर्बाब-हरम साथ रहेगा
अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
ले मेरे तजरबों से सबक़ ऐ मिरे रक़ीब
सितम के बा'द करम की अदा भी ख़ूब रही
दर्द-ए-मुश्तरक
बड़ा मुंसिफ़ है अमरीका उसे अल्लाह ख़ुश रक्खे
सदमे झेलूँ जान पे खेलूँ उस से मुझे इंकार नहीं है
साँवली