मुफ़्लिस के बदन को भी है चादर की ज़रूरत
अब खुल के मज़ारों पे ये एलान किया जाए
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जो बीत गई उस की ख़बर है कि नहीं है
बड़ा मुंसिफ़ है अमरीका उसे अल्लाह ख़ुश रक्खे
आज और कल
इतने ऊँचे मर्तबे तक तुझ को पहुँचाएगा कौन
सोच को जुरअत-ए-पर्वाज़ तो मिल लेने दो
अपने होंटों पर सजाना चाहता हूँ
रास्ते याद नहीं राह-नुमा याद नहीं
सुर्ख़ आहन पर टपकती बूँद है अब हर ख़ुशी
हालात से ख़ौफ़ खा रहा हूँ
वो दिल ही क्या तिरे मिलने की जो दुआ न करे
जो भी ग़ुंचा तिरे होंटों पे खिला करता है
एहतिराम-ए-लब-ओ-रुख़्सार तक आ पहुँचे हैं