दरयाफ़्त करे वज़्न हवा का मुझ से
पूछे वो कभी रंग सदा का मुझ से
डरता हूँ वो मालूम न कर बैठे कहीं
क्या नाता है सावन की घटा का मुझ से
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जाँच-परख कर देख चुकी तू हर मुँह-बोले भाई को
हिकायात-ए-लब-ओ-रुख़्सार से आगे नहीं जाते
इक जाम खनकता जाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है
लुढ़कता पत्थर
यारो कहाँ तक और मोहब्बत निभाऊँ मैं
तेरे ख़तों की ख़ुश्बू
लफ़्ज़ चुनता हूँ तो मफ़्हूम बदल जाता है
निगाहों में चमक दिल में ख़ुशी महसूस करता हूँ
तुम्हारी अंजुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते
चाँदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल
हमें भी नींद आ जाएगी हम भी सो ही जाएँगे
अगरचे मुझ को जुदाई तिरी गवारा नहीं