आओ कुछ शग़्ल करें बैठे हैं उर्यां इतने
आओ कुछ शग़्ल करें बैठे हैं उर्यां इतने
फाड़ें सीना ही गो हाथ आए गरेबाँ इतने
आह कोई जो उसे आन के समझाता हो
देखते हैं खड़े हिन्दू ओ मुसलमाँ इतने
सच कह ऐ बाद-ए-सबा है किसी गुल पर ये बहार
तू ने देखे हैं ज़माने के गुलिस्ताँ इतने
शोर महशर का रहे क्यूँ न तिरे कूचे में
जिस जगह होवें इकट्ठे दिल-ए-नालाँ इतने
हम से वामाँदों को अल्लाह निबाहे तो निभें
तन सो ये ख़स्ता ओ दरपेश बयाबाँ इतने
दम भी कुछ चीज़ है जब चूक गया बात तमाम
कौन सी ज़ीस्त पे तू करता है सामाँ इतने
तुझ को 'क़ाएम' रखे अल्लाह बहुत सा ऐ अमीर
मुजतमा साए में हैं जिस के सुख़न-दाँ इतने
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