ख़स नमत साथ मौज के लग ले
बहते बहते कहीं तो जाइएगा
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फ़िक्र-ए-तामीर में हूँ फिर भी मैं घर की ऐ चर्ख़
वाशुद की दिल के और कोई राह ही नहीं
बा'द ख़त आने के उस से था वफ़ा का एहतिमाल
पूछो हो मुझ से तुम कि पिएगा भी तू शराब
शब जो दिल बे-क़रार था क्या था
अब के जो यहाँ से जाएँगे हम
डहा खड़ा है हज़ारों जगह से क़स्र-ए-वजूद
शिकवा न बख़्त से है ने आसमाँ से मुझ को
इलाही वाक़ई इतना ही बद है फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर
फूटी भली वो आँख जो आँसू से तर नहीं
टुक तो ख़ामोश रखो मुँह में ज़बाँ सुनते हो
जूँ शम्अ दम-ए-सुब्ह मैं याँ से सफ़री हूँ