उम्र भर खुल नहीं पाते हैं रुमूज़-ओ-असरार
लोग कुछ सामने रह कर भी निहाँ होते हैं
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Gulzar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Rahat Indori
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अपनी यही पहचान, यही अपना पता है
बातों से फूल झड़ते थे लेकिन ख़बर न थी
जब अपने वा'दों से उन को मक्र ही जाना था
आतिश-ए-इश्क़ से बचिए कि यहाँ हम ने भी
जाँ यूँ लिबास-ए-जिस्म को निकली उतार कर
डगमगाते कभी क़दमों को सँभलते देखा
तेरे बिन हयात की सोच भी गुनाह थी
दरिया-ए-मोहब्बत में मौजें हैं न धारा है
लबों को खोल तो कैसा भी हो जवाब तो दे
डाल दी पैरों में उस शख़्स के ज़ंजीर यहाँ
कोहसार तो कहीं पे समुंदर भी आएँगे