जान दे दी रहरव-ए-मंज़िल ने मंज़िल के क़रीब

जान दे दी रहरव-ए-मंज़िल ने मंज़िल के क़रीब

हौसले तूफ़ाँ के निकले भी तो साहिल के क़रीब

वो नज़र बहकी हुई फिरती है क्यूँ दिल के क़रीब

उस की मंज़िल भी है शायद मेरी मंज़िल के क़रीब

अज़्म-ए-ग़र्क़ाबी है तो मिन्नत-कश-ए-तूफ़ाँ न बन

कश्तियाँ लाखों हुई हैं ग़र्क़ साहिल के क़रीब

रहरव-ए-मंज़िल ने बन कर मर्कज़-ए-यास-ओ-उमीद

मंज़िलें लाखों बना लीं अपनी मंज़िल के क़रीब

डूबने वाले को तिनके का सहारा चाहिए

मौज भी साहिल नज़र आती है साहिल के क़रीब

जान दे कर मुतमइन है रहरव-ए-हिम्मत-शिकन

दूरी-ए-मंज़िल ने पहुँचाया है मंज़िल के क़रीब

दीदनी है उस की हसरत उस का अरमाँ उस का शौक़

जिस की कश्ती डूब जाए आ के साहिल के क़रीब

डगमगा जाते हैं पा-ए-शौक़ अक्सर ऐ 'रईस'

मंज़िलें ऐसी भी आ जाती हैं मंज़िल के क़रीब

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In Hindi By Famous Poet Raees Niyazi. is written by Raees Niyazi. Complete Poem in Hindi by Raees Niyazi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.