ये भूल जा कि हैं तेरे भी ग़म-गुसार बहुत
ये भूल जा कि हैं तेरे भी ग़म-गुसार बहुत
बनाना काग़ज़ी फूलों के ख़ुश्क हार बहुत
जो चश्म-ए-यार है होश-ओ-ख़िरद शिकार बहुत
दिल-ओ-नज़र पे हमें भी है इख़्तियार बहुत
हम अपने वक़्त की तस्वीर-ए-मस्ख़-सूरत हैं
दिखाए हम को न आईना रोज़गार बहुत
ख़ुदा वो वक़्त न लाए कि आज़माइश हो
तअ'ल्लुक़ात तुम्हीं से हैं उस्तुवार बहुत
किसी भी शाख़ पे जब मेरा आशियाँ न मिला
चमन में आज फिरी बर्क़ बे-क़रार बहुत
दिल-ए-तबाह की नैरंगियों का हाल न पूछ
गहे क़रार बहुत गाह बे-क़रार बहुत
हयात नाज़िश-ए-कौनैन हो तो क्या ग़म है
वो चार दिन की सही उम्र-ए-मुस्तआ'र बहुत
हमें तो अपनी वफ़ाओं का मिल रहा है सिला
जफ़ा-ओ-जौर पे वो क्यूँ हैं शर्मसार बहुत
बहुत दिनों से अब अपनी तलाश में गुम हैं
'रईस' छान चुके ख़ाक-ए-कू-ए-यार बहुत
(388) Peoples Rate This