Ghazals of Rafiq Raaz

Ghazals of Rafiq Raaz
नामरफ़ीक राज़
अंग्रेज़ी नामRafiq Raaz
जन्म की तारीख1954
जन्म स्थानShrinagar

ये जो हर सम्त तिरे नेज़े की शोहरत है बहुत

तमाम रू-ए-ज़मीं पर सुकूत छाया था

सियाह दश्त की जानिब सफ़र दोबारा किया

सेहर कैसा ये नई रुत ने किया धरती पर

साँप सा लेटा हुआ सुनसान रस्ता सामने था

पैदा किया है उड़ती हुई ख़ाक से मुझे

मैं अभी इक बूँद हूँ पहले करो दरिया मुझे

कुर्रा-ए-अर्ज़ को तारीक बना देना था

जू-ए-कम-आब से इक तेज़ सा झरना हुआ मैं

जिस्म दीवार है दीवार में दर करना है

जलता हुआ जो छोड़ गया ताक़ पर मुझे

हम तो बस इक उक़्दा थे हल होने तक

हवा में जो ये एक नमनाकी है

हमारी तरह हुरूफ़-ए-जुनूँ के जाल में आ

ग़ज़ब की काट थी अब के हवा के तानों में

फ़ानी कहाँ है हस्ती-ए-फ़ानी का शोर भी

एक सहरा है मिरी आँख में हैरानी का

इक फ़लक और ही सर पर तो बना सकते हैं

इक धुआँ उठ रहा है आँगन से

दयार-ए-जिस्म से सहरा-ए-जाँ तक

चाँदनी रात में इक बार उसे देखा था

चंद हर्फ़ों ने बहुत शोर मचा रक्खा है

बुझा चराग़ हवाओं का सामना कर के

अजीब ख़ामुशी है ग़ुल मचाती रहती है

अब्र हूँ और बरसने को भी तय्यार हूँ मैं

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