अजीब ख़ामुशी है ग़ुल मचाती रहती है

अजीब ख़ामुशी है ग़ुल मचाती रहती है

ये आसमान ही सर पर उठाती रहती है

किया है इश्क़ तो साबित-क़दम भी रहना सीख

मियाँ ये हिज्र की आफ़त तो आती रहती है

ये जो है आज ख़राबा कभी चमन था क्या

यहाँ तो एक मगस भिनभिनाती रहती है

डरो नहीं ये कोई साँप ज़ेर-ए-काह नहीं

हवा है और वही सरसराती रहती है

मिरे ही वास्ते मंज़र ज़ुहूर करते हैं

मिरी ही आँख यहाँ जगमगाती रहती है

हवा अगरचे बहुत तेज़ है मगर फिर भी

मैं ख़ाक हूँ ये मिरे काम आती रहती है

ये कैसी चश्म-ए-तख़य्युल है ऊँघती भी नहीं

अजीब रंग के मंज़र बनाती रहती है

वो इक निगाह भी नेज़े से कम नहीं यानी

हमारे ख़ून-ए-जिगर में नहाती रहती है

क़दम भी ख़ाक पे करते हैं कुछ न कुछ तहरीर

हवा की मौज भी उस को मिटाती रहती है

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In Hindi By Famous Poet Rafiq Raaz. is written by Rafiq Raaz. Complete Poem in Hindi by Rafiq Raaz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.