लोग पत्थर के थे फ़रियाद कहाँ तक करते
दिल के वीराने हम आबाद कहाँ तक करते
Parveen Shakir
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
Rahat Indori
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(736) Peoples Rate This
रात आख़िर हो सितम-पेशों पे ऐसा भी नहीं
ख़ेमा-ज़न कौन है आख़िर ये कनार-ए-दिल पर
ये उम्र गुज़री है इतने सितम उठाने में
रौशनी बन के अँधेरे पे असर हम ने किया
किस की आँखों की हिदायत से मुझे देखता है
किन सराबों का मुक़द्दर हुईं आँखें मेरी
कभी यूँ भी करो शहर-ए-गुमाँ तक ले चलो मुझ को
अपने होने का कोई साज़ नहीं देती है
अपने बीमार सितारे का मुदावा होती
यक़ीं से फूटती है या गुमाँ से आती है
ज़िंदगी थी ये तमाशा तो नहीं था पहले