जो भीक माँगते हुए बच्चे के पास था
उस कासा-ए-सवाल ने सोने नहीं दिया
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जो सहीफ़ों में लिखी है वो क़यामत हो जाए
तेरी गली को छोड़ के जाना तो है नहीं
ये सोच कर न फिर कभी तुझ को पुकारा दोस्त
शब-ओ-रोज़ रक़्स-ए-विसाल था सो नहीं रहा
किसी की चश्म-ए-गुरेज़ाँ में जल बुझे हम लोग
नींद आँखों में मुसलसल नहीं होने देता
सफ़र में रस्ता बदलने के फ़न से वाक़िफ़ है
मैं ने तुम्हें चलना सिखाया था
कौन कहाँ तक जा सकता है
मसरूफ़ियत उसी की है फ़ुर्सत उसी की है
दिल को रह रह के ये अंदेशे डराने लग जाएँ