Ghazals of Sabir Waseem

Ghazals of Sabir Waseem
नामसाबिर वसीम
अंग्रेज़ी नामSabir Waseem

ये उम्र भर का सफ़र है इसी सहारे पर

ये महर ओ मह बे-चराग़ ऐसे कि राख बन कर बिखर रहे हैं

वो फूल था जादू-नगरी में जिस फूल की ख़ुश्बू भाई थी

वो धूप वो गलियाँ वही उलझन नज़र आए

उस जंगल से जब गुज़रोगे तो एक शिवाला आएगा

तमाम मोजज़े सारी शहादतें ले कर

राह में शहर-ए-तरब याद आया

पलकों पर नम क्या फैल गया

पहला पत्थर याद हमेशा रहता है

मिरे ध्यान में है इक महल कहीं चौबारों का

लोगो ये अजीब सानेहा है

ख़्वाब तुम्हारे आते हैं

ख़िज़ाँ से सीना भरा हो लेकिन तुम अपना चेहरा गुलाब रखना

खिले हुए हैं फूल सितारे दरिया के उस पार

खेल रचाया उस ने सारा वर्ना फिर क्यूँ होता मैं

करता है कोई और भी गिर्या मिरे दिल में

जो ख़्वाब मेरे नहीं थे मैं उन को देखता था

गुल ओ महताब लिखना चाहता हूँ

इक शोर समेटो जीवन भर और चुप दरिया में उतर जाओ

इक शक्ल बे-इरादा सर-ए-बाम आ गई

इक सफ़र पर उसे भेज कर आ गए

इक आग देखता था और जल रहा था मैं

देखो ऐसा अजब मुसाफ़िर फिर कब लौट के आता है

असीर-ए-शाम हैं ढलते दिखाई देते हैं

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