है एक उम्र से ख़्वाहिश कि दूर जा के कहीं
मैं ख़ुद को अजनबी लोगों के दरमियाँ देखूँ
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ख़ुद से निकलूँ तो अलग एक समाँ होता है
जब सामने की बात ही उलझी हुई मिले
ख़ाक में मिलती हैं कैसे बस्तियाँ मालूम हो
घर के बारे में यही जान सका हूँ अब तक
सब सवालों के जवाब एक से हो सकते हैं
रौशनी है किसी के होने से
न जाने क्यूँ सदा होता है एक सा अंजाम
फिर इस के बाद रास्ता हमवार हो गया
वो हक़ीक़त में एक लम्हा था
तेरे बारे में अगर ख़ामोश हूँ मैं आज तक
जिसे सुनाओगे पहले ही सुन चुका होगा