रौशनी है किसी के होने से
वर्ना बुनियाद तो अंधेरा था
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किरदार कह रहे हैं कुछ अपनी ज़बान में
बराए नाम सही साएबाँ ज़रूरी है
तमाम वहम ओ गुमाँ है तो हम भी धोका हैं
निकल गए थे जो सहरा में अपने इतनी दूर
वो हक़ीक़त में एक लम्हा था
फ़क़त ज़मीन से रिश्ते को उस्तुवार किया
जिस को तय कर न सके आदमी सहरा है वही
क्यूँ हर उरूज को यहाँ आख़िर ज़वाल है
एक रहने से यहाँ वो मावरा कैसे हुआ
मेरे बारे में जो सुना तू ने
ज़माने भर से उलझते हैं जिस की जानिब से
तेरे बारे में अगर ख़ामोश हूँ मैं आज तक