मुंजमिद था लहू रग-ओ-पय में
तेरी आमद हयात ले आई
Gulzar
Jaun Eliya
Habib Jalib
Anwar Masood
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(498) Peoples Rate This
मैं चाहता हूँ कि हर शय यहाँ सँवर जाए
दर्द इतना भी नहीं है कि छुपा भी न सकूँ
आरज़ूएँ सब ख़ाक हुईं
ऐसी आग फ़लक से बरसेगी इक दिन
राएगाँ हो रही थी तंहाई
मेरी आँखों में नूर भर देना
ज़मीं की आँख ख़ाली है दिनों ब'अद
नया रौशन सहीफ़ा दिख रहा नईं
ज़हर में डूबी हुई सुर्ख़ हिकायात में गुम
नज़र को तीर कर के रौशनी को देखने का